धर्म एवं दर्शन >> भक्ति गीतांजलि भक्ति गीतांजलिस्वामी रामदेवजी
|
6 पाठकों को प्रिय 403 पाठक हैं |
परम पूज्य स्वामी रामदेवजी महाराज द्वारा गाये जाने वाले प्रिय भजनों, अन्य भावपूर्ण भजनों का अनूठा संग्रह
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भूमिका
‘‘साहित्य-संगीत-कला-विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।’’
हमारी सांस्कृतिक परम्परा में साहित्य एवं कला के साथ-साथ संगीत भी मनुष्य
की श्रेष्ठताओं में एक है। संगीत का सीधा सम्बन्ध हमारी आत्मा से है।
ह्रदय से निस्सृत शब्द जब भावनापूर्ण अवस्था में मुख से निस्सृत होते हैं
तो संगीत का रूप धारण करते हैं। संगीत आन्तरिक संवेदनाओं एवं वैश्विक
सम्प्रेषणाओं के संयोग से उद्बुद्ध होता है।
श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज द्वारा योग शिविर एवं सत्संग आदि में गाए जाने वाले भजनों की माँग वर्षों से साधकों की ओर से रही है। प्रस्तुत पुस्तक में भक्ति-गीतों के साथ-साथ क्रान्ति-गीतों का भी समावेश किया गया है।
मनुष्य को आन्तरिक रूप से पूरी तरह विकसित करने के लिए अर्थात् उसे सच्चे अर्थों में इन्सान बनाने के लिए सत्साहित्य, शिल्पकला, यज्ञ, योग, साधना आदि के समान ही संगीत भी एक बहुत अच्छा साधन है। मेरे विचार से यही कारण है कि विश्व की सभी सांस्कृतियों में संगीत को एक बहुत ही आदरणीय स्थान प्राप्त रहा है। ऋषि-मुनिकृत साहित्य में स्थान-स्थान पर साहित्य, संगीत, कला आदि की प्रशंसा में लिखे अनेक साहित्य व तत्सम्बन्धि लेख (गद्य-पद्य) आदि मिलते हैं।
वस्तुत: संगीत का हमारी अन्त:चेतना से सीधा संबंध है। वह सीधा हमारी अन्त:चेतना से नि:स्सृत होता है। जब किसी संवेदनशील व्यक्ति का हृदय हर्ष, शोक, करुणा के भावों से भर जाता है, तो वे ही भाव कविता, भजन, गीत, गजल आदि के रूप में फूट पड़ते हैं। चूँकि ये शब्द हमारे हृदय की गहराई से आते हैं इसीलिये कविता, भजन, गीत आदि हमारे मन या हमारी सत्ता के केन्द्र को गहराई तक छू जाते हैं। हम अवश से हुए अनायास ही एक प्रकार की गहन संवेदनशीलता की ओर बहे चले जाते हैं। यह गहन संवेदनशीलता की ओर बह जाना हमें स्वत: ही आन्तरिक रूप से रूपान्तरित करने लगता है और हम पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर आरोहण करने लगते हैं।
अन्त में मैं भजनों, गीतों आदि के रचियता वन्दनीय कवियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ और आशा करता हूँ कि भक्ति, क्रान्ति व भावों से परिपूर्ण यह ‘‘भक्ति गीतांजलि’’ पाठकों की आन्तरिक जिज्ञासा को पूर्ण करने में सहायक सिद्ध होगी।
श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज द्वारा योग शिविर एवं सत्संग आदि में गाए जाने वाले भजनों की माँग वर्षों से साधकों की ओर से रही है। प्रस्तुत पुस्तक में भक्ति-गीतों के साथ-साथ क्रान्ति-गीतों का भी समावेश किया गया है।
मनुष्य को आन्तरिक रूप से पूरी तरह विकसित करने के लिए अर्थात् उसे सच्चे अर्थों में इन्सान बनाने के लिए सत्साहित्य, शिल्पकला, यज्ञ, योग, साधना आदि के समान ही संगीत भी एक बहुत अच्छा साधन है। मेरे विचार से यही कारण है कि विश्व की सभी सांस्कृतियों में संगीत को एक बहुत ही आदरणीय स्थान प्राप्त रहा है। ऋषि-मुनिकृत साहित्य में स्थान-स्थान पर साहित्य, संगीत, कला आदि की प्रशंसा में लिखे अनेक साहित्य व तत्सम्बन्धि लेख (गद्य-पद्य) आदि मिलते हैं।
वस्तुत: संगीत का हमारी अन्त:चेतना से सीधा संबंध है। वह सीधा हमारी अन्त:चेतना से नि:स्सृत होता है। जब किसी संवेदनशील व्यक्ति का हृदय हर्ष, शोक, करुणा के भावों से भर जाता है, तो वे ही भाव कविता, भजन, गीत, गजल आदि के रूप में फूट पड़ते हैं। चूँकि ये शब्द हमारे हृदय की गहराई से आते हैं इसीलिये कविता, भजन, गीत आदि हमारे मन या हमारी सत्ता के केन्द्र को गहराई तक छू जाते हैं। हम अवश से हुए अनायास ही एक प्रकार की गहन संवेदनशीलता की ओर बहे चले जाते हैं। यह गहन संवेदनशीलता की ओर बह जाना हमें स्वत: ही आन्तरिक रूप से रूपान्तरित करने लगता है और हम पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर आरोहण करने लगते हैं।
अन्त में मैं भजनों, गीतों आदि के रचियता वन्दनीय कवियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ और आशा करता हूँ कि भक्ति, क्रान्ति व भावों से परिपूर्ण यह ‘‘भक्ति गीतांजलि’’ पाठकों की आन्तरिक जिज्ञासा को पूर्ण करने में सहायक सिद्ध होगी।
-आचार्य बालकृष्ण
भजन-1
ओम् कहने से तर जायेगा-2
तेरा जीवन सँवर जायेगा-2
ओम् करने से.......।
बड़ी मुश्किल से नर तन मिला-2
पार भाव से उतर जायेगा-2
ओम् कहने से.........।।
अपनी झोली तो फैला जरा-2
देने वाला है भर जायेगा-2
ओम् कहने से.........।।
सब कहेंगे कहानी तेरी-2
काम अच्छा हो जायेगा-2
ओम् कहने से.........।।
तेरा जीवन सँवर जायेगा-2
ओम् करने से.......।
बड़ी मुश्किल से नर तन मिला-2
पार भाव से उतर जायेगा-2
ओम् कहने से.........।।
अपनी झोली तो फैला जरा-2
देने वाला है भर जायेगा-2
ओम् कहने से.........।।
सब कहेंगे कहानी तेरी-2
काम अच्छा हो जायेगा-2
ओम् कहने से.........।।
भजन-2
ऐसे इस संसार को जीतो।
कामबली जीतो संयम से।।
क्रोध को दया विचार से जीतो।
ऐसे इस संसार............।।
कड़वे को कड़वा मत बोलो-2
जहर के बदले अमृत घोलो-2
बदगुमाँ मगरूर को अपने-2
मधुर-मधुर व्यवहार से जीतो।
ऐसे इस संसार............।।
जीतो जुल्म सहन शक्ति से-2
बदी हारती है नेकी से-2
लोभ किये संतोष है थोड़ा-2
मोह त्याग तलवार से जीतो।
ऐसे इस संसार............।।
कामबली जीतो संयम से।
ऐसे इस संसार को जीतो।।
कामबली जीतो संयम से।।
क्रोध को दया विचार से जीतो।
ऐसे इस संसार............।।
कड़वे को कड़वा मत बोलो-2
जहर के बदले अमृत घोलो-2
बदगुमाँ मगरूर को अपने-2
मधुर-मधुर व्यवहार से जीतो।
ऐसे इस संसार............।।
जीतो जुल्म सहन शक्ति से-2
बदी हारती है नेकी से-2
लोभ किये संतोष है थोड़ा-2
मोह त्याग तलवार से जीतो।
ऐसे इस संसार............।।
कामबली जीतो संयम से।
ऐसे इस संसार को जीतो।।
भजन-3
तेरा पल-पल बीता जाये
मुख से बोलो ओम्-ओम्
ओम बोलो ओम्।
तेरा पल-पल...........।।
ओम्-ओम् हृदय से बोलो-2
मन मन्दिर का पर्दा खोलो-2
तेरा अवसर खाली न जाये।
मुख से बोलो...........।।
ये दुनिया पंछी का मेला-2
समझो उड़ जाना है अकेला-2
तेरा मन-मन साथ न जाये।
मुख से बोलो...........।।
प्रभु सुमिरण से मस्त बने जा-2
भक्ति सुधारस पान किये जा-2
तेरी नैया पार लगाये।
मुख से बोलो...........।।
तेरा पल-पल बीता जाये।
मुख से बोलो ओम् ओम्।।
मुख से बोलो ओम्-ओम्
ओम बोलो ओम्।
तेरा पल-पल...........।।
ओम्-ओम् हृदय से बोलो-2
मन मन्दिर का पर्दा खोलो-2
तेरा अवसर खाली न जाये।
मुख से बोलो...........।।
ये दुनिया पंछी का मेला-2
समझो उड़ जाना है अकेला-2
तेरा मन-मन साथ न जाये।
मुख से बोलो...........।।
प्रभु सुमिरण से मस्त बने जा-2
भक्ति सुधारस पान किये जा-2
तेरी नैया पार लगाये।
मुख से बोलो...........।।
तेरा पल-पल बीता जाये।
मुख से बोलो ओम् ओम्।।
भजन-4
ओम् नगर के हीरे मोती, मैं बिखराऊँ गली-गली।
ले लो रे कोई प्रभु का प्यारा, शोर मचाऊँ गली-गली।।
ओम नाम के........................।।
दौलत के दीवानों सुन लो, इक दिन ऐसा आयेगा।
धन, यौवन और माल खजाना, यहीं पड़ा रह जायेगा।।
सुन्दर काया माटी होगी, चर्चा होगी गली-गली।
ले लो रे कोई........................।।
मिलकर प्यारे सगे-संबंधी, एक दिन तुझे भुलायेंगे।
कल तक जो अपना कहते थे, आग में तुझे सुलायेंगे।।
जगत् सराय ये दो दिन का है, आखिर होगी चली-चली।
ले लो रे कोई........................।।
जिसको अपना कहकर बन्दे तूने इतना इतराता।
छोड़ जायेंगे सभी विपत्ति में, कोई काम नहीं आता।।
दो दिन का ये चमन खिला है, फिर मुरझाये कली-कली।।
ले लो रे कोई........................।।
क्यों करता ये मेरा-मेरी, तज दे इस अभिमान को।
झूठे फन्दे छोड़ दे बन्दे, भज ले प्रभु के नाम को।।
ऐसा मौका फिर ना मिलेगा, पछतायेगा गली-गली।
ले लो रे कोई........................।।
ले लो रे कोई प्रभु का प्यारा, शोर मचाऊँ गली-गली।।
ओम नाम के........................।।
दौलत के दीवानों सुन लो, इक दिन ऐसा आयेगा।
धन, यौवन और माल खजाना, यहीं पड़ा रह जायेगा।।
सुन्दर काया माटी होगी, चर्चा होगी गली-गली।
ले लो रे कोई........................।।
मिलकर प्यारे सगे-संबंधी, एक दिन तुझे भुलायेंगे।
कल तक जो अपना कहते थे, आग में तुझे सुलायेंगे।।
जगत् सराय ये दो दिन का है, आखिर होगी चली-चली।
ले लो रे कोई........................।।
जिसको अपना कहकर बन्दे तूने इतना इतराता।
छोड़ जायेंगे सभी विपत्ति में, कोई काम नहीं आता।।
दो दिन का ये चमन खिला है, फिर मुरझाये कली-कली।।
ले लो रे कोई........................।।
क्यों करता ये मेरा-मेरी, तज दे इस अभिमान को।
झूठे फन्दे छोड़ दे बन्दे, भज ले प्रभु के नाम को।।
ऐसा मौका फिर ना मिलेगा, पछतायेगा गली-गली।
ले लो रे कोई........................।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book